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जन्मते हैं
स्वप्न
सत्य की
कोख से,
उतरती नहीं
बात यह
गले उनको
सत्य को
जिन्हें
अक्षुण
कुंवारी
मनने की
आदत सी
हो गयी है.....
क्या जाने
जड़ों की
हकीक़त को
वो निरीह बन्दे
जिन्हें
गिनती
पत्तों की
करने की
आदत सी
हो गयी है.....
Monday, June 7, 2010
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