प्रेम
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प्रेम एक
दुर्लभ
पुष्पगुच्छ
उपहार द्वारा
ले आता है
समीप
फिर करता है
जिद्द
पुष्पों से
अनुपान
करने की,
कर देता है दग्ध
वचनों
एवम्
इन्द्रियों को,
करता है
हरण
दृष्टि और
विवेक का,
करते हुए
नयन-हीन
प्रेम-अभिनेताओं को,
करके विचारों से
तर्क को पृथक
कर देता है
तीव्र
गतिमान
प्रवाह में
सम्मिलित.
प्रेम
करता हुआ
अभिनय
सोम-रस का
बन जाता है
काल-कूट;
अथवा
जैसे हो
कोई
गंधहीन-रूपहीन
द्रव जो,
जलाता है--
झुलसाता है,
नहीं छोड़ता है
कोई अवशेष:
ना धुआं
ना भस्म.
प्रेम है
मदिरा-पात्र में
भरा एक
प्राणघाती विष.
आक्रामक
# # #
मैं
निरीह बन
सहती जाती हूँ
सब कुछ,
लेकिन
भंग होती है
जब
परिसीमा
विखंडित हो जाता है
धैर्य मेरा
और
मैं हो जाती हूँ
आक्रामक
लगभग
अचानक.
Sunday, June 13, 2010
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