Sunday, June 13, 2010

प्रेम : A One-sided Note

(प्रेम को एक नज़रिए से देखा है...किसी के लिए भोगा हुआ यथार्थ हो सकता है, किसी के लिए बुद्धि विलास, किसी के लिए ब्रहम सत्यम जगत मिथ्या का सन्देश, किसी के लिए एक प्रतिक्रियात्मक लेखन, सच तो यह है कि प्रेम के बिना सब सूना...मगर ऐसा भी तो सोचा जाता है ना कभी कभी...पाठकों ! "यह अभिव्यक्ति एकांगी है... बिलकुल सापेक्ष")

# # #

प्रेम एक
दुर्लभ
पुष्पगुच्छ,
उपहार द्वारा
ले आता है
समीप
फिर करता है
जिद्द
पुष्पों से
अनुपान
करने की,
कर देता है दग्ध
वचनों
एवम्
इन्द्रियों को,
करता है
हरण
दृष्टि और
विवेक का,
करते हुए
नयन-हीन
प्रेम-अभिनेताओं को,
करके विचारों से
युक्ति( logic ) को पृथक
कर देता है,
तीव्र गतिमान
दिशाहीन
प्रवाह में
सम्मिलित.....

प्रेम,
करता हुआ
अभिनय
सोम रस का
बन जाता है
कालकूट ;
अथवा
जैसे हो
कोई
गंधहीन-रूपहीन
द्रव जो,
जलाता है ---
झुलसाता है,
नहीं छोड़ता
कोई भी अवशेष
ना धुंवा
ना भस्म...

प्रेम है
मदिरापात्र में
भरा
एक
प्राणघाती विष...

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