'मननीय' स्तम्भ के अंतर्गत मधु संचय के इस अंक में गुरु गोरखनाथ की यह वाणी संकलित की गयी है :
"भरया ते थीरं झलझलन्ति आधा, सिधें सिधें मिल्य रे अवधू बोल्या अरु लाधा."
भावार्थ है- आधा भरा हुआ घड़ा खूब आवाज़ करके अपने अधूरेपन की जानकारी सबको दे देता है, लेकिन जिस प्रकार पूर्ण कुम्भ को लेकर चलने पर किसी को पाता नहीं लगता है; उसी प्रकार सिद्ध जन से सिद्ध जन का मिलन जब होता है तो उनकी वार्ता बिना शब्दों के ही हो जाती है. आवश्यक होने पर भी वे कुछ बोलते है तो अनुभूत सत्य के बारे में संक्षिप्त बात होती है.
एक नेनो इस भाव के साथ :
आधा भरा : पूरा भरा
# # #
आधा भरा
घट
करके
खूब आवाज़
बता देता
हकीक़त अपनी,
नहीं मालूम
होता
मगर
चलना
किसी का
भरे घट को
लेकर...
(गोरख वाणी पर आधारित)
Saturday, June 19, 2010
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