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देखा करती थी
बचपन में
रंग बदलते
गिरगिट को
मासूम दिल में
उठता था
सवाल,
हर लम्हे यह
कैसे बदल
सकता है रंग ?
आज
देखती हूँ जब
इंसानों के
बेढंगे ढंग
उनके भी
बदलते रंग
मेरे त-अ-ज्जुब की
झीनी सी
चादर
नज़र
आती है
बेरंग....
Sunday, June 6, 2010
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